नज़राना इश्क़ का (भाग : 37)
रात काफी गहरी हो चुकी थी, निमय अपने कमरे में बैठा कुछ सोच रहा था। वह काफी देर तक फोन की स्क्रीन के तरफ देखता रहा, फिर फ़ोन साइड रखते हुए आलमारी से अपनी डायरी ढूंढने लगा, जिसे पढ़ने के बाद जाह्नवी ने उसी आलमारी में रख दिया था। थोड़ी ही देर बाद उसे उसकी डायरी मिल गयी, वह एक कपड़ा लेकर उसे साफ करने लगा और फिर पन्ने पलटते हुए काफी आगे बढ़ गया जहां सारे पन्ने कोरे थे, निमय ने कुछ क्षण सोचा फिर पेन निकालकर कुछ लिखने बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे, वह काफी खोया खोया सा दिखाई दे रहा था। उसने थोड़ी देर के लिए अपनी आंखें बंद की और फिर डायरी लिखना शुरू किया।
"मेरे लिए बस तुम ही तुम हो
मगर तुम जाने कहाँ गुम हो
ये चाँद देखो अंधेरे में डूबा
लिए रौशनी सितारों में तुम हो!"
पता नहीं कितने दिनों बाद मैंने दुबारा तुमसे कुछ कहा है ना डायरी! पर तब मेरे पास कुछ कहने को नहीं था, आज मेरे पास कहने को बहुत कुछ है, मेरे ख़्याल, कुछ मलाल और कुछ सवाल भी!
तुम्हें यकीन नहीं होगा कि हम मतलब कि मैं और फरी अब काफी अच्छे दोस्त बन गए हैं, आज फरी ने कुछ अजीब से सवाल पूछें मैंने भी उसे क्या क्या जवाब दिया इसका तो मुझे रत्तीभर अंदाजा भी नहीं है। मैंने बस कन्हैया से कहा कि अब उन्हीं के हाथों में मोरी लाज है, और फिर जैसे कोई चमत्कार हो गया हो। मतलब सच में... इतनी क्लिष्ट हिंदी तो मुझे खुद आती भी नहीं है, पर क्या फरी को सच में प्रेम के विषय पर कोई शोध करना है? अगर शोध करना होता तो फिर वो मेरे पास क्यों आती? अगर ऐसा होता तो विक्की और जानू को भी पता होता। उसने अंत में कुछ कहा, और फिर भाई आ रहें हैं, कहकर भाग गई..! और तो और जानू मेरे पीछे खड़ी थी, पता नहीं उसने हमारी बात सुन ली या नहीं!
पता है मैं तब से जानू को यह बात बताने की कोशिश कर रहा हूँ, पर यह बात बता पाना इतना आसान भी नहीं है। मतलब कोई मुझे अभी बॉर्डर पर जंग में भेज दे वो काम बिना किसी हिचक के खुशी खुशी कर लूंगा पर इसके बारे में बताना, उफ्फ... ये इतना ज्यादा मुश्किल क्यों है डायरी?
पता है अब मेरी लाइफ काफी अच्छी चल रही है, हम चारों साथ साथ हैं। हां! होली के दिन मेरी खोपड़ी की झोपड़ी उजड़ते उजड़ते बची, मतलब लाल तो हो ही गया था, अब पहले से काफी बेहतर महसूस कर रहा हूँ।
ओह मैं तो मुद्दा ही बदल दिया! मुद्दा ये है डायरी कि मुझे ये नहीं पता उसके मन में क्या है! वो कहती है मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त हूँ पर अपने आप को मुझसे छिपाकर रखना चाहती है, वो कहती है कि वो मुझसे सबसे ज्यादा यकीन करती है पर जिस बात से उसे तकलीफ हो उसको मुझसे छिपाकर रखती है, और तो और अब तो वो भी कभी कभी जानू की तरह टोंट मारने पर उतर आती है।
पता है डायरी! मेरी जानू के बाद फरु इकलौती ऐसी लड़की है जिसने मेरे दिल में उसके बराबर जगह बनाया है! कहते हैं कि आँखे सब बयाँ कर देती हैं, मगर उसकी आंखों में मुझे सिवाय उलझन और कुछ नहीं दिखता! मैंने कई दफा उससे पूछने की कोशिश की मगर वह हर बार इस बात से इनकार करती जाती है। पर मैं आज उससे सबकुछ जानकर ही रहूंगा।
वो दुनिया की सबसे अच्छी लड़की है डायरी! ऐसा लगता है, जैसे मेरी साँसों और धड़कनो पर उसका कब्जा हो चुका हो, उसके बिना बेचैन होने लगता हूँ। पता है पहले मैं भी प्यार व्यार का खूब मजाक उड़ाया करता था, पर अब जब अपने दिल पर गुजर रही है न तो मालूम होता है कि ये सच में आग का दरिया है। जब जिससे प्यार करो उसके नाम के बिना खुली हवा में भी सांस नहीं आती न तब एहसास होता है कि प्यार क्या है..! दिल हरपल थोड़ा थोड़ा जलता रहता है, इस इंतेज़ार में कि काश! किसी दिन तो वो मुझे हासिल हो जाएगा...! पर जब भी उससे अपने दिल की बात कहना चाहता हूँ न, मेरी धड़कने बढ़ जाती हैं, हाथ पांव फूल जाते हैं, दिमाग सुन्न पड़ जाता है, मुँह तो जैसे बोलना ही भूल जाता है। ये प्यार कितना अजीब है न डायरी! हर रोज पिछले दिन से कहीं ज्यादा चाहत और दर्द बढ़ते जाता है, पर जब वो साथ होती है न तो इतना सुकून मिलता है जितना कि सारी दुनिया हासिल होने पर भी न हो..! उफ्फ.. क्या कहूँ...
ओरे कन्हैया! ये क्या कर डाला
इस इश्क़ ने मुझे बेहाल कर डाला
कैसा जाल है ये तेरा,समझ आवे नहीं
पहले से ज्यादा जिंदा कर, मार डाला।
कन्हैया! अब तो बस तिहारा ही सहारा है, भले मेरा प्रेम तुम जितना विशुद्ध और दैवीय न हो, पर मुझे उसकी आँखो में ही अपनी दुनिया, अपनी खुशियां नजर आती हैं, उसके साथ ही सुकून मिलता है, बस उसे पाने का जुनून है। उसे कुछ होने के इक छोटे से ख्याल से दिल घबरा जाता है, उसके होने से दिल हरे खेतों की तरह लहलहा जाता है। ये ना जाने कैसे किस्से हैं, मुझसे ही अलग में हिस्से हैं, तू ही बता कैसे पूरा होगा ये अफसाना इश्क़ का? क्या बस ये ख्वाहिशें और दर्द ही होंगी नज़राना इश्क़ का?
चलो अब सो जाओ डायरी! मैं भी चलता हूँ, शायद कन्हैया ही कोई चमत्कार करें, अब सब आस तो उन्हीं पर है।
गुड नाईट डायरी
राधे राधे...!"
डायरी टेबल के ऊपर रखी किताबों के बीच में रखते हुए निमय बिस्तर पर पसर गया, उसकी बंद आँखों के सामने फरी का मासूम, निश्छल सा चेहरा उभर रहा था। वह अपने फोन में से फरी की तस्वीरें देखने लगा, फरी को देखते ही उसके चेहरे पर बरबस ही मुस्कान फैल गयी, उसे असीम सुकून से महसूस हुआ। थोड़ी ही देर बाद वह गहरे नींद के सागर में खो चुका था।
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अगले दिन सुबह…!
जाह्नवी जोर जोर से दरवाजा खटखटा रही थी, काफी देर जगाने के बाद भी जब निमय नहीं उठा तो उसने उसके उसके कमरे की बिजली ही कट कर दी, गर्मी के मौसम में बिना पंखे या कूलर के इंसान ठीक वसे ही तड़पने लगता है जैसे जल बिन मछली!
ठीक वैसा ही हुआ जैसा जाह्नवी ने सोचा था, करीब दो मिनट बाद निमय अपने रूम का दरवाजा खोलकर बाहर निकला।
"इतनी देर तक कौन सोता है भला? देख तो दस बज गए?" जाह्नवी गन्दा सा मुँह बनाकर अपने मोबाइल में टाइम दिखाते हुए शिकायती लहजे में बोली।
"क्या दस बज गए? लग तो नहीं रहा…!" निमय हैरानी के साथ बोला, उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि वह आज इतना देर तक सोया। "पहले क्यों नहीं जगाया फिर?"
"तुझे जगाने में तो गधे भी थक जाएं, इंसान क्या चीज है!" जाह्नवी उसको घूरते हुए बोली।
"हाँ! ये सही कहा तूने, अब कोई गधी जगा रही तो कैसे जागता? इंसान जगाता तो फिर कोई अलग बात होती!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाकर बनावटी शिकायती लहजे में बोला।
"लो शुरू हो गए सुबह सुबह। जानू! बेटा अब तो उसे तंग करना बंद कर दे, सात बज गए हैं, निमय को नहलाना भी है।" इससे पहले जाह्नवी कुछ और कहती, उनकी माँ जानकी ने किचन से बाहर निकलते हुए उसे आवाज लगाया।
"क्या बस सात बजे रहा?" निमय की आँखे हैरानी से फैल गयी।
"चल अब नहलाना भी है तुझे?" जाह्नवी उसका हाथ पकड़कर खीचने लगी।
"क्या? नहीं! मम्मी अब मैं ठीक हूँ, नहा लूंगा मैं खुद से..!" निमय ऐसे उछला जैसे उसका पांव गर्म तवे पर पड़ गया हो।
"जैसी आपकी इच्छा..!" जाह्नवी ने मुँह टेड़ा करते हुए कहा और वहां से जाने लगी। "वैसे पता है, आज विक और फरु आने वाले हैं?"
"हें… क्या? ये तुम लोगों की प्लान वाली खिचड़ी कहाँ पकती है? मुझे तो कुछ पता ही नहीं है?" निमय की आंखे आश्चर्य से चौड़ी हो गयी।
"तेरे सामने ही बनती है गधे! अब तू न जाने कौन सी दुनिया में खोया रहता है। ये बात तो पापा और मम्मा को भी पता है।" जाह्नवी, निमय को घूरते हुए कंधे उचकाकर बोली।
"अं… ह हाँ याद है न, बिल्कुल याद है.. वो ब..बस थोड़ा सा भूल गया था…!" निमय हकलाते हुए गले को खखारकर बोला।
"ठीक है फिर…!" जाह्नवी ने फिर से कंधे उचकाए। "चल अब ब्रश कर और नहा धो ले… और हाँ मुझे कोई तेरी चाकरी करने का शौक नहीं है, वो तो गलती से मेरा बड़ा भाई बनकर पैदा हो गया है ना.. इसलिए थोड़ा लिहाज करती हूँ…!" जाह्नवी मुँह बनाते हुए बोली और फिर रसोईघर की तरफ बढ़ गयी।
"मुझे तो जैसे कुछ पता ही नहीं है… पगली..!" निमय उसको जाते देख हौले से मुस्काया। वह बहुत अच्छे से जानता था कि, उसके बात बात पे लड़ने, ताना देने को आतुर रहने, बात बात पर मुँह बनाने के पीछे वो उससे कितना प्यार करती है, उसकी कितना परवाह करती है, सबकुछ हद से ज्यादा….! उसके चेहरे पर मुस्कान फैलती गयी, वह जल्दी से ब्रश करते हुए बाथरूम की ओर बढ़ा।
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"उस बेवकूफ की वजह से उसने मुझे छोड़ दिया! आखिर कमी क्या है मुझ में? उसने मुझे सड़क से उठाकर अपने महल में रखा इसका गुरुर है उसे? पर वो तो पगली है.. फिर भी वो इस राजा की रानी है। तूने उसका दिल दुखाकर बहुत बड़ी गलती की है निमय शर्मा! पिछली बार तो तू बच गया..! अब की बार तो तुझे ब्रह्मा भी नहीं बचा सकते। हाहाहा…!" हाथ में शराब की बोतल लिए नशे में झूमता राजा जोर जोर से चिल्लाते हुए अट्ठहास कर रहा था। उसकी हालत बेहद दयनीय थी, चेहरे पर एक दो जगह चोट के निशान थे, कपड़े कई जगहों से फ़टे हुए थे, ऐसा लगता था जैसे काफी दिन से उसने ठीक से खाया तक नहीं था। वह शिक्षा के उस बर्ताव से इतना दुखी हुआ था। आज भी उसके कानों में शिक्षा के वही शब्द गूंज रहे थे.. "नाम मत लो मेरा…. दूर हट जाओ मुझसे… कभी नजर मत आना…!" राजा अपने कानों पर रखते हुए जोर जोर से चिल्ला रहा था, उसकी चीखों में दर्द के साथ बेइन्तहा नफरत भी नजर आ रही थी। शिक्षा के इस बर्ताव से उसके जीने की चाह खत्म सी हो गयी थी, मगर वह अब तक जी रहा था, क्योंकि उसके जीने का एक इकलौता मकसद अब बाकी था.. निमय की मौत!
क्रमशः…!
सिया पंडित
21-Feb-2022 04:41 PM
Very nice
Reply
Pamela
15-Feb-2022 01:29 PM
गुड स्टोरी...
Reply
मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:10 PM
Thank you so much ❤️
Reply
Inayat
13-Feb-2022 11:57 PM
ओह कहानी को मोड़ दे दिया आपने अलग...!
Reply
मनोज कुमार "MJ"
20-Feb-2022 02:11 PM
Ji dhanyawad
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